{"title":"आत्मनिर्भर भारत@2047 की लक्ष्य सिद्धिमें गांधीजी के विचार GANDHIAN THOUGHTS IN ACHIEVEMENT OF GOALS@ SELF-SUFFICIENCY INDIA@2047","authors":"Dr. Hasmukh Panchal, Dr. Lokesh Jain","doi":"10.37867/te150330","DOIUrl":null,"url":null,"abstract":"आत्मिनिर्भर भारत 2047 के लक्ष्यपथ पर चलने का संकल्प आजादी के अमृत महोत्सव के पंच प्राणों का एक अहम् घटक है जो राष्ट्र व राष्ट्रवासियों को समग्रता की दृष्टि से गरिमामय स्थिति में पहुँचाने की प्रतिबद्धता व्यक्त करता है। माननीय प्रधानमंत्रीजी अपने दूरदृष्टा नेतृत्व में स्वच्छ भारत, जनधनयोजना, किसान समृद्धि योजना, कौशल्य विकास योजना, लघु एवं कुटीर उद्योग विकास योजना जैसे कई ठोस कदम उठाए गए। आजादी का अमृत महोत्सव जिसमें देश का युवा, महिलाएं, किसान, मजदूर आदि सभी को किसी न किसी रूप में शामिल किया गया ताकि वे अपनी भूमिका सार्थक बनाते हुए गौरव की अनुभूति कर सकें। आत्मनिर्भर भारत 2047 देश की प्राथमिकता व अनिवार्य आवश्यकता है ताकि गरीबी, बेकारी, बेरोजगारी, निम्न उत्पादकता, उपभोक्तावाद, अति-औद्योगिकीकरण, सामाजिक-आर्थिक असमानता, भावशून्यता और बढ़ती जाती संवेदनहीनता के दूषण और प्रदूषण से मुक्ति पाकर सही मायनों में सुखी, समृद्ध, शांतिपूर्ण व सौहार्दयुत समाज की स्थापना का स्वपन साकार किया जा सके, राष्ट्र व राष्ट्रवासियों का चहुँमुखी, स्थायी व संपोषीय विकास सुनिश्चित किया जा सके। आज हम विकास के नाम पर जिस रास्ते पर अनवरत रूप से होड़ाहोड़ी में गति कर रहे हैं उसके परिणामों से हम सभी कमोवेश वाकिफ ही हैं, कुछ ने अनुभव कर लिया, कुछ को पश्चाताप है तथा कुछ अभी भी इसी को नियति मानने की भूल कर रहे हैं, सबकुछ जानकर भी भौतिकतावादी चकाचोंध का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं, विकृत मानसिकताजनित आसक्ति को कम नहीं कर पा रहे हैं। आधुनिकता की अंधीदौड़ में हम कुछ पाने की लालच वह बहुत कुछ खोते जा रहे हैं जिस पर हमारे अस्तित्व का दारोमदार टिका हुआ है। स्वाबलंबन का शब्द हमारे लिए नया नहीं है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी ने भारत की सच्ची आजादी के लिए इसका प्रयोग किया और स्वाबलंबनजनित आर्थिक आजादी को राजनैतिक आजादी की पूर्व शर्त के रूप में उन्होंने देश के सामने रखा। इसका कोई विकल्प नहीं लेकिन बहुत तेजी से सबकुछ पा लेने की लालच में हम इस शब्द और रास्ते के मर्म को भुलाकर विनाश के कगार की पहुँच गए जहाँ आपाधापी. अशांति, वैर, द्वेष व संघर्ष के सिवा कुछ नहीं नजर नहीं आता। ऐसे में सभी के अस्तित्व को बचाने के लिए महात्मा गांधीजी द्वारा निर्देशित स्वाबलंबन की कड़ी के प्रतिमानों को वर्तमान व भावी चिरंजीवी विकास के परिप्रेक्ष्य में समझना होगा, निष्पक्ष रूप से विश्लेषित करना होगा। यह लेख इसी पड़ताल को लेकर आगे बढ़ता है जिसके प्रथम भाग में स्वाबलंबन का सार स्वरूप तथा आवश्यकता को समझने-समझाने का प्रयास किया गया है, दूसरे भाग में प्रवर्तमान विकास का परिदृश्य व उसके दूरगामी परिणाम को विश्लेषित किया गया है जिसमें उन चुनौतियों को चिन्हित किया गया है जो स्वाबलंबन भारत 2047 मिशन के रास्ते में बड़ी बाधा है। इस लेख के तीसरे भाग में इस मिशन में सहायक तथा अकाट्य रामवाण रूप गांधीजी के संपोषीय आर्थिक विचारों व प्रयोगों को सुधी पाठकों व सहभागी साथियों के समक्ष रखा गया है तथा अंत में भारत विश्व गुरु के शिखर पर आसीन हो सके जिसमें आमजन उनके परंपरागत ज्ञान-विज्ञान की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हो उसे चतुर्थ उपसंहार के रूप में रखा गया है।","PeriodicalId":23114,"journal":{"name":"Towards Excellence","volume":"95 1","pages":"0"},"PeriodicalIF":0.0000,"publicationDate":"2023-09-30","publicationTypes":"Journal Article","fieldsOfStudy":null,"isOpenAccess":false,"openAccessPdf":"","citationCount":"0","resultStr":null,"platform":"Semanticscholar","paperid":null,"PeriodicalName":"Towards Excellence","FirstCategoryId":"1085","ListUrlMain":"https://doi.org/10.37867/te150330","RegionNum":0,"RegionCategory":null,"ArticlePicture":[],"TitleCN":null,"AbstractTextCN":null,"PMCID":null,"EPubDate":"","PubModel":"","JCR":"","JCRName":"","Score":null,"Total":0}
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Abstract
आत्मिनिर्भर भारत 2047 के लक्ष्यपथ पर चलने का संकल्प आजादी के अमृत महोत्सव के पंच प्राणों का एक अहम् घटक है जो राष्ट्र व राष्ट्रवासियों को समग्रता की दृष्टि से गरिमामय स्थिति में पहुँचाने की प्रतिबद्धता व्यक्त करता है। माननीय प्रधानमंत्रीजी अपने दूरदृष्टा नेतृत्व में स्वच्छ भारत, जनधनयोजना, किसान समृद्धि योजना, कौशल्य विकास योजना, लघु एवं कुटीर उद्योग विकास योजना जैसे कई ठोस कदम उठाए गए। आजादी का अमृत महोत्सव जिसमें देश का युवा, महिलाएं, किसान, मजदूर आदि सभी को किसी न किसी रूप में शामिल किया गया ताकि वे अपनी भूमिका सार्थक बनाते हुए गौरव की अनुभूति कर सकें। आत्मनिर्भर भारत 2047 देश की प्राथमिकता व अनिवार्य आवश्यकता है ताकि गरीबी, बेकारी, बेरोजगारी, निम्न उत्पादकता, उपभोक्तावाद, अति-औद्योगिकीकरण, सामाजिक-आर्थिक असमानता, भावशून्यता और बढ़ती जाती संवेदनहीनता के दूषण और प्रदूषण से मुक्ति पाकर सही मायनों में सुखी, समृद्ध, शांतिपूर्ण व सौहार्दयुत समाज की स्थापना का स्वपन साकार किया जा सके, राष्ट्र व राष्ट्रवासियों का चहुँमुखी, स्थायी व संपोषीय विकास सुनिश्चित किया जा सके। आज हम विकास के नाम पर जिस रास्ते पर अनवरत रूप से होड़ाहोड़ी में गति कर रहे हैं उसके परिणामों से हम सभी कमोवेश वाकिफ ही हैं, कुछ ने अनुभव कर लिया, कुछ को पश्चाताप है तथा कुछ अभी भी इसी को नियति मानने की भूल कर रहे हैं, सबकुछ जानकर भी भौतिकतावादी चकाचोंध का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं, विकृत मानसिकताजनित आसक्ति को कम नहीं कर पा रहे हैं। आधुनिकता की अंधीदौड़ में हम कुछ पाने की लालच वह बहुत कुछ खोते जा रहे हैं जिस पर हमारे अस्तित्व का दारोमदार टिका हुआ है। स्वाबलंबन का शब्द हमारे लिए नया नहीं है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी ने भारत की सच्ची आजादी के लिए इसका प्रयोग किया और स्वाबलंबनजनित आर्थिक आजादी को राजनैतिक आजादी की पूर्व शर्त के रूप में उन्होंने देश के सामने रखा। इसका कोई विकल्प नहीं लेकिन बहुत तेजी से सबकुछ पा लेने की लालच में हम इस शब्द और रास्ते के मर्म को भुलाकर विनाश के कगार की पहुँच गए जहाँ आपाधापी. अशांति, वैर, द्वेष व संघर्ष के सिवा कुछ नहीं नजर नहीं आता। ऐसे में सभी के अस्तित्व को बचाने के लिए महात्मा गांधीजी द्वारा निर्देशित स्वाबलंबन की कड़ी के प्रतिमानों को वर्तमान व भावी चिरंजीवी विकास के परिप्रेक्ष्य में समझना होगा, निष्पक्ष रूप से विश्लेषित करना होगा। यह लेख इसी पड़ताल को लेकर आगे बढ़ता है जिसके प्रथम भाग में स्वाबलंबन का सार स्वरूप तथा आवश्यकता को समझने-समझाने का प्रयास किया गया है, दूसरे भाग में प्रवर्तमान विकास का परिदृश्य व उसके दूरगामी परिणाम को विश्लेषित किया गया है जिसमें उन चुनौतियों को चिन्हित किया गया है जो स्वाबलंबन भारत 2047 मिशन के रास्ते में बड़ी बाधा है। इस लेख के तीसरे भाग में इस मिशन में सहायक तथा अकाट्य रामवाण रूप गांधीजी के संपोषीय आर्थिक विचारों व प्रयोगों को सुधी पाठकों व सहभागी साथियों के समक्ष रखा गया है तथा अंत में भारत विश्व गुरु के शिखर पर आसीन हो सके जिसमें आमजन उनके परंपरागत ज्ञान-विज्ञान की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हो उसे चतुर्थ उपसंहार के रूप में रखा गया है।