{"title":"राजभाषा-‘हिंदी’ के संदर्भ में के.एम. मुंशी का योगदान","authors":"डॉ. नीतिनकुमार जी. राठोड","doi":"10.37867/te150248","DOIUrl":null,"url":null,"abstract":"के.एम. मुंशी का राष्ट्रीय एकता में क्या योगदान था? और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिये उनका क्या योगदान रहा है? इस विषय पर बात करना चाहता हूं। ‘गुजरात’ (मासिक), ‘समर्पण’, हंस(प्रेमचन्दजी के साथ) आदि पत्रिकाओं के माध्यम से और भारतीय विद्याभवन की स्थापना, उदयपुर में अखिल भारत हिन्दी साहित्य परिषद के प्रमुख और १९३७-३९ - मुंबई राज्य के सांसद-गृहमंत्री रहे उस दौरान भाषा और साहित्य के लिए उन्होनें काफी काम किया था। उपर्युक्त सभी पहेलुओं में मुंशी का योगदान हिंदी के विकास में और राष्ट्रभाषा/राजभाषा बनाने में रहा है। इसमें से मुझे सन. १९२९-४२ में मुन्शी ने साहित्य संसद के प्रमुख स्थान से जो व्याख्यान दिए थे वह अति महत्वपूर्ण है। के. एम. मुंशी ने १९३६ में यह विश्वास व्यक्त किया था कि अगर हम लिपि और साहित्य के भेद मिटा के साहित्य और कला में एकता लाए तो एक-दो दशक में राष्ट्रभाषा का उद्भव हो सकता है। प्रांतीय साहित्य की मदद से हम एक भाषा, एक साहित्य का निर्माण कर सकते हैं बशर्ते हमें इसके समर्थन में सभी प्रान्त की आत्माओं से एक आवाज़ एक साथ निकलानी चाहिए। मुन्शी कहतें हैं कि आर्यभाषा में संस्कृत भाषा हमारे पुराणों और आत्मा की भाषा है। सभी भाषा की जननी संस्कृत है। इसीलिए से संस्कृत राष्ट्रीय एकता ला सकती है। गांधीजी की प्रेरणा से, भारतीय विद्याभवन की स्थापना, उदयपुर में अखिल भारत हिन्दी साहित्य परिषद के प्रमुख, हिंदी साहित्य की कई पत्रिकाओं के माध्यम से मुंशीजी ने हिंदी को राजभाषा बनाने में अहम योगदान दिया है। संविधान में ‘मुन्शी आयंगर’ फार्मूला नाम से विख्यात अनुच्छेद संविधान के भाग-17में अनुच्छेद ३४३ से ३५१ तक में दर्ज है। मुन्शी का यह योगदान भारत कभी भूल नहीं सकता। 14 सितम्बर 1949 को ‘हिंदी दिवस’ के रूप में मनाने में भी मुंशी जी का योगदान रहा है। अपनी मातृभाषा गुजराती होने के बावजूद काफी संस्थाओं का निर्माण करके, हिंदी विषयक साहित्य की रचना करके, हिंदी पत्रिकाओं का प्रकाशन करके मुंशीजी ने हिंदी को राजभाषा बनाने पर काफी जोर दिया है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए मुंशी जी ने जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो योगदान दिया है उसे भूलाया नहीं जा सकता।","PeriodicalId":23114,"journal":{"name":"Towards Excellence","volume":"17 1","pages":""},"PeriodicalIF":0.0000,"publicationDate":"2023-06-30","publicationTypes":"Journal Article","fieldsOfStudy":null,"isOpenAccess":false,"openAccessPdf":"","citationCount":"0","resultStr":null,"platform":"Semanticscholar","paperid":null,"PeriodicalName":"Towards Excellence","FirstCategoryId":"1085","ListUrlMain":"https://doi.org/10.37867/te150248","RegionNum":0,"RegionCategory":null,"ArticlePicture":[],"TitleCN":null,"AbstractTextCN":null,"PMCID":null,"EPubDate":"","PubModel":"","JCR":"","JCRName":"","Score":null,"Total":0}
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Abstract
के.एम. मुंशी का राष्ट्रीय एकता में क्या योगदान था? और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिये उनका क्या योगदान रहा है? इस विषय पर बात करना चाहता हूं। ‘गुजरात’ (मासिक), ‘समर्पण’, हंस(प्रेमचन्दजी के साथ) आदि पत्रिकाओं के माध्यम से और भारतीय विद्याभवन की स्थापना, उदयपुर में अखिल भारत हिन्दी साहित्य परिषद के प्रमुख और १९३७-३९ - मुंबई राज्य के सांसद-गृहमंत्री रहे उस दौरान भाषा और साहित्य के लिए उन्होनें काफी काम किया था। उपर्युक्त सभी पहेलुओं में मुंशी का योगदान हिंदी के विकास में और राष्ट्रभाषा/राजभाषा बनाने में रहा है। इसमें से मुझे सन. १९२९-४२ में मुन्शी ने साहित्य संसद के प्रमुख स्थान से जो व्याख्यान दिए थे वह अति महत्वपूर्ण है। के. एम. मुंशी ने १९३६ में यह विश्वास व्यक्त किया था कि अगर हम लिपि और साहित्य के भेद मिटा के साहित्य और कला में एकता लाए तो एक-दो दशक में राष्ट्रभाषा का उद्भव हो सकता है। प्रांतीय साहित्य की मदद से हम एक भाषा, एक साहित्य का निर्माण कर सकते हैं बशर्ते हमें इसके समर्थन में सभी प्रान्त की आत्माओं से एक आवाज़ एक साथ निकलानी चाहिए। मुन्शी कहतें हैं कि आर्यभाषा में संस्कृत भाषा हमारे पुराणों और आत्मा की भाषा है। सभी भाषा की जननी संस्कृत है। इसीलिए से संस्कृत राष्ट्रीय एकता ला सकती है। गांधीजी की प्रेरणा से, भारतीय विद्याभवन की स्थापना, उदयपुर में अखिल भारत हिन्दी साहित्य परिषद के प्रमुख, हिंदी साहित्य की कई पत्रिकाओं के माध्यम से मुंशीजी ने हिंदी को राजभाषा बनाने में अहम योगदान दिया है। संविधान में ‘मुन्शी आयंगर’ फार्मूला नाम से विख्यात अनुच्छेद संविधान के भाग-17में अनुच्छेद ३४३ से ३५१ तक में दर्ज है। मुन्शी का यह योगदान भारत कभी भूल नहीं सकता। 14 सितम्बर 1949 को ‘हिंदी दिवस’ के रूप में मनाने में भी मुंशी जी का योगदान रहा है। अपनी मातृभाषा गुजराती होने के बावजूद काफी संस्थाओं का निर्माण करके, हिंदी विषयक साहित्य की रचना करके, हिंदी पत्रिकाओं का प्रकाशन करके मुंशीजी ने हिंदी को राजभाषा बनाने पर काफी जोर दिया है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए मुंशी जी ने जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो योगदान दिया है उसे भूलाया नहीं जा सकता।