{"title":"吠陀价值观在当今教育中的作用","authors":"डाॅ. निशा गोयल","doi":"10.22271/23947519.2021.V7.I5B.1471","DOIUrl":null,"url":null,"abstract":"पराचीन काल स ही समाज म शिकषा का वयापक महततव रहा ह। समाज का विकास और उसका पतन शिकषा की वयवसथा पर ही आधारित रहता ह। शिकषा की समचित वयवसथा पर ही बौदधिक, वजञानिक एव सासकतिक परगति सभव ह। वरतमान शिकषा परणाली भौतिकता क विकास एव उननति पर आधारित ह। सिरफ पद, परतिषठा, जीविका, कषणिक सख और अनत म मतय ही ईशवर की सरवोतकषट रचना का परम लकषय नही हो सकता, बलकि जिस परापत कर लन क बाद कछ भी परापत करना शष नही रह जाता, वही मानवता का परम लकषय ह। अतएव आज आवशयकता ह कि भौतिकता की शिकषा म वदिक मलयो का भी समावश किया जाए, ताकि वयकति मानवता को न भल, वह अपन अधिकार एव करतवयो की सीमा निरधारित कर सक, भोग एव योग दोनो वयकति म समाहित हो।","PeriodicalId":345811,"journal":{"name":"International Journal of Sanskrit Research","volume":"137 1","pages":"0"},"PeriodicalIF":0.0000,"publicationDate":"2021-09-01","publicationTypes":"Journal Article","fieldsOfStudy":null,"isOpenAccess":false,"openAccessPdf":"","citationCount":"0","resultStr":"{\"title\":\"वर्तमान शिक्षा में वैदिक मूल्यों की उपादेयता\",\"authors\":\"डाॅ. निशा गोयल\",\"doi\":\"10.22271/23947519.2021.V7.I5B.1471\",\"DOIUrl\":null,\"url\":null,\"abstract\":\"पराचीन काल स ही समाज म शिकषा का वयापक महततव रहा ह। समाज का विकास और उसका पतन शिकषा की वयवसथा पर ही आधारित रहता ह। शिकषा की समचित वयवसथा पर ही बौदधिक, वजञानिक एव सासकतिक परगति सभव ह। वरतमान शिकषा परणाली भौतिकता क विकास एव उननति पर आधारित ह। सिरफ पद, परतिषठा, जीविका, कषणिक सख और अनत म मतय ही ईशवर की सरवोतकषट रचना का परम लकषय नही हो सकता, बलकि जिस परापत कर लन क बाद कछ भी परापत करना शष नही रह जाता, वही मानवता का परम लकषय ह। अतएव आज आवशयकता ह कि भौतिकता की शिकषा म वदिक मलयो का भी समावश किया जाए, ताकि वयकति मानवता को न भल, वह अपन अधिकार एव करतवयो की सीमा निरधारित कर सक, भोग एव योग दोनो वयकति म समाहित हो।\",\"PeriodicalId\":345811,\"journal\":{\"name\":\"International Journal of Sanskrit Research\",\"volume\":\"137 1\",\"pages\":\"0\"},\"PeriodicalIF\":0.0000,\"publicationDate\":\"2021-09-01\",\"publicationTypes\":\"Journal Article\",\"fieldsOfStudy\":null,\"isOpenAccess\":false,\"openAccessPdf\":\"\",\"citationCount\":\"0\",\"resultStr\":null,\"platform\":\"Semanticscholar\",\"paperid\":null,\"PeriodicalName\":\"International Journal of Sanskrit Research\",\"FirstCategoryId\":\"1085\",\"ListUrlMain\":\"https://doi.org/10.22271/23947519.2021.V7.I5B.1471\",\"RegionNum\":0,\"RegionCategory\":null,\"ArticlePicture\":[],\"TitleCN\":null,\"AbstractTextCN\":null,\"PMCID\":null,\"EPubDate\":\"\",\"PubModel\":\"\",\"JCR\":\"\",\"JCRName\":\"\",\"Score\":null,\"Total\":0}","platform":"Semanticscholar","paperid":null,"PeriodicalName":"International Journal of Sanskrit Research","FirstCategoryId":"1085","ListUrlMain":"https://doi.org/10.22271/23947519.2021.V7.I5B.1471","RegionNum":0,"RegionCategory":null,"ArticlePicture":[],"TitleCN":null,"AbstractTextCN":null,"PMCID":null,"EPubDate":"","PubModel":"","JCR":"","JCRName":"","Score":null,"Total":0}
पराचीन काल स ही समाज म शिकषा का वयापक महततव रहा ह। समाज का विकास और उसका पतन शिकषा की वयवसथा पर ही आधारित रहता ह। शिकषा की समचित वयवसथा पर ही बौदधिक, वजञानिक एव सासकतिक परगति सभव ह। वरतमान शिकषा परणाली भौतिकता क विकास एव उननति पर आधारित ह। सिरफ पद, परतिषठा, जीविका, कषणिक सख और अनत म मतय ही ईशवर की सरवोतकषट रचना का परम लकषय नही हो सकता, बलकि जिस परापत कर लन क बाद कछ भी परापत करना शष नही रह जाता, वही मानवता का परम लकषय ह। अतएव आज आवशयकता ह कि भौतिकता की शिकषा म वदिक मलयो का भी समावश किया जाए, ताकि वयकति मानवता को न भल, वह अपन अधिकार एव करतवयो की सीमा निरधारित कर सक, भोग एव योग दोनो वयकति म समाहित हो।