{"title":"समावेशी वर्ग में शिक्षा समता और समानता भीमराव रामजी अंबेडकर का दृष्टिकोण","authors":"अभिषेक शर्मा, अन्नू शर्मा","doi":"10.59231/sari7611","DOIUrl":null,"url":null,"abstract":"डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर का समावेशी वर्ग में शिक्षा, समता और समानता का दर्शन भारत के सामाजिक आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। आजादी के बाद के दशकों में हम विभिन्न विधानों और सरकारी संस्थानों के माध्यम से पहुंच और समानता के मुद्दों में व्यस्त रहे हैं इन में अम्बेडकर ने शिक्षा, शैक्षिक संस्थान, जाति, धर्म, स्त्री आदि मामलों पर प्रकाश डाला । अंबेडकर का मानना हैं की समता और समानता यह हर इंसान की जरूरत ही नहीं यह सभी का अधिकार है । जो खुलकर और बेबाकी से बाबा साहब (बी. आर. अम्बेडकर ने समाज को बताया। बी. आर. अम्बेडकर ने समाज के उन सभी वर्गों को समावेशी कहा, जिनका समाज के अन्य वर्गों द्वारा कहीं न कहीं शोषण किया गया है या फिर किसी व्यक्ति के माध्यम से अभी भी शोषण किया जा रहा हो । अम्बेडकर ने भारत में बिना अधिकारों के रहने वाले प्रत्येक भारतीय लोगों के अधिकारों के बारे में बात की क्योंकि आजादी के बाद ऐसे कई लोग हैं जो उस समाज में रहते तो है पर अधिकार के नाम पर उनका शोषण ही हो रहा है । अम्बेडकर ने जन्म–आधारित उत्पीड़न को समाप्त करने के लिए अथक संघर्ष किया, जिसमें कुछ उच्च वर्गों के लाभ और विकास के लिए शिक्षा, रोजगार, आवास और समान अवसर जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रतिबंधित हैं । संविधान सभी पहलुओं में समता समानता को दर्शाता है और इसकी संरचना में एक महत्वपूर्ण घटक साबित होता है । संविधान बनाते समय बाबासाहेब ने समान रूप से समावेशी वर्ग को शामिल किया और उन्होंने प्रस्तावित किया कि समावेशी समाज भी मनुष्य हैं इसलिए कोई पक्षपात नहीं होना चाहिए और हमें जाति सूत्र के बिना एक राष्ट्र का विचार प्रदान किया ।","PeriodicalId":447056,"journal":{"name":"Shodh Sari-An International Multidisciplinary Journal","volume":"159 1","pages":"0"},"PeriodicalIF":0.0000,"publicationDate":"2023-07-10","publicationTypes":"Journal Article","fieldsOfStudy":null,"isOpenAccess":false,"openAccessPdf":"","citationCount":"0","resultStr":null,"platform":"Semanticscholar","paperid":null,"PeriodicalName":"Shodh Sari-An International Multidisciplinary Journal","FirstCategoryId":"1085","ListUrlMain":"https://doi.org/10.59231/sari7611","RegionNum":0,"RegionCategory":null,"ArticlePicture":[],"TitleCN":null,"AbstractTextCN":null,"PMCID":null,"EPubDate":"","PubModel":"","JCR":"","JCRName":"","Score":null,"Total":0}
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Abstract
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर का समावेशी वर्ग में शिक्षा, समता और समानता का दर्शन भारत के सामाजिक आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। आजादी के बाद के दशकों में हम विभिन्न विधानों और सरकारी संस्थानों के माध्यम से पहुंच और समानता के मुद्दों में व्यस्त रहे हैं इन में अम्बेडकर ने शिक्षा, शैक्षिक संस्थान, जाति, धर्म, स्त्री आदि मामलों पर प्रकाश डाला । अंबेडकर का मानना हैं की समता और समानता यह हर इंसान की जरूरत ही नहीं यह सभी का अधिकार है । जो खुलकर और बेबाकी से बाबा साहब (बी. आर. अम्बेडकर ने समाज को बताया। बी. आर. अम्बेडकर ने समाज के उन सभी वर्गों को समावेशी कहा, जिनका समाज के अन्य वर्गों द्वारा कहीं न कहीं शोषण किया गया है या फिर किसी व्यक्ति के माध्यम से अभी भी शोषण किया जा रहा हो । अम्बेडकर ने भारत में बिना अधिकारों के रहने वाले प्रत्येक भारतीय लोगों के अधिकारों के बारे में बात की क्योंकि आजादी के बाद ऐसे कई लोग हैं जो उस समाज में रहते तो है पर अधिकार के नाम पर उनका शोषण ही हो रहा है । अम्बेडकर ने जन्म–आधारित उत्पीड़न को समाप्त करने के लिए अथक संघर्ष किया, जिसमें कुछ उच्च वर्गों के लाभ और विकास के लिए शिक्षा, रोजगार, आवास और समान अवसर जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रतिबंधित हैं । संविधान सभी पहलुओं में समता समानता को दर्शाता है और इसकी संरचना में एक महत्वपूर्ण घटक साबित होता है । संविधान बनाते समय बाबासाहेब ने समान रूप से समावेशी वर्ग को शामिल किया और उन्होंने प्रस्तावित किया कि समावेशी समाज भी मनुष्य हैं इसलिए कोई पक्षपात नहीं होना चाहिए और हमें जाति सूत्र के बिना एक राष्ट्र का विचार प्रदान किया ।